ये कैसा परोपकार? एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी

एक बार की बात है एक व्यक्ति अपने परिवार के साथ रेगिस्तान मार्ग से होकर अपने घर को लौट रहा था घर लौटते समय उसके पास रखा पानी का इंतज़ाम भी ख़त्म होने चला था |

चूँकि रास्ता लम्बा और मंज़िल दूर थी अतः बचा खुचा पानी भी उसके पास से पूरा ख़त्म हो गया और उसके बच्चों और पत्नी का गाला प्यास से सूखने लगा |

प्यास से व्याकुल होकर वे सभी लोग अपने मंज़िल की तरफ चले जा रहे थे अब स्थिति बहुत ज्यादा ख़राब होने लगी थी और उसके बच्चे तथा पत्नी और एक कदम बढ़ाने के हालत में नहीं थे तभी अचानक उन्हें रास्ते के उस पार एक झोपड़ी दिखाई पड़ी वह व्यक्ति अपने बीवी बच्चों को एक पेड़ के छायें बिठा कर झोपड़ी की तरफ चल पड़ा |

झोपड़ी के पास पहुँच कर उसे पता चला की यहाँ कोई संत महात्मा रहते है ऐसा सोच कर वह बहुत खुश हुआ और झोपड़ी के अंदर दाख़िल हुआ और उसने देखा झोपड़ी के अंदर पानी से भरे बहुत सारे मटके रखे हुए हैं |

झोपड़ी में दाख़िल होने के पश्चात् उसने देखा की एक संत तपस्या में लीन है लेकिन उस व्यक्ति के अंदर दाख़िल होने की वज़ह से उनकी आँखें खुल गयी, संत ने उस व्यक्ति से पूछा कि बताइये श्रीमान  मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?

उस व्यक्ति ने तपाक से कहा कि मेरा परिवार प्यास से बहुत व्याकुल है उनमें और आगे चलने की हिम्मत नहीं है अगर उन्हें पानी नहीं मिला तो उनकी मृत्यु तक हो सकती है |

ऐसा सुन कर उन संत महात्मा ने उत्तर दिया कि श्रीमान आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है यहाँ पास में ही एक बावड़ी है वहाँ से आप पानी भर कर अपने परिवार की प्यास बुझा सकते हैं |

यह बात सुन कर उस व्यक्ति को ख़ुशी भी महसूस हुई और थोड़ा आश्चर्य भी की यदि संत के पास पहले से ही मटके में पानी भरा हुआ था तो उन्होंने अपने पास से पानी क्यों नहीं दिया ?

हालाँकि ज्यादा न सोचते हुए वह व्यक्ति बावड़ी की तरफ भागा और एक पात्र में पानी भर कर अपने परिवार की तरफ जाने लगा, अभी कुछ ही दूर चला था की उसे एक अन्य व्यक्ति मिला और उससे गुहार करने लगा की उसे पानी की सख़्त आवश्यकता है वह बहुत प्यासा है ऐसा सुन कर उस व्यक्ति ने अपना पूरा पानी उसे दे दिया और फिर से बावड़ी की तरफ पानी के लिए दौड़ पड़ा |

दोबारा जब वह पानी भर कर लौट ही रहा था कि फिर से तीसरा व्यक्ति उसे मिला और फ़िर से वही सब हुआ |

अब वह तीसरी बार पानी भर कर लौट रहा था तो रास्ते में फिर से कुछ लोग मिले जिनका प्यास से बुरा हाल था उनका हाल उससे देखा नहीं गया और अपना पानी का पात्र उनके तरफ बढ़ाने लगा ऐसा देख कर उस संत महात्मा ने उस व्यक्ति का हाथ पकड़ लिया और उसे ज़ोर से डाँटने लगे की अरे मुर्ख वहाँ तेरा परिवार प्यास से तड़प रहा है और तू राहगीरों को पानी पिलाने में व्यस्त है |

उस व्यक्ति ने कहा हे संत ये तो हमारा धर्म कहता है कि भूखे और प्यासे को कभी लौटाना नहीं चाहिए |

तब उस संत ने उत्तर दिया की अरे मुर्ख तू धर्म को गलत तरीके से मत बयां कर बल्कि धर्म को अच्छे से समझ, इस जगह पर धर्म ये कहता है कि जब बावड़ी पास में ही मौजूद है और वहाँ से कोई भी जाकर पानी ले सकता है तो तू व्यर्थ में अपना कीमती समय क्यों बर्बाद कर रहा है और अपने परिवार को प्यासा मार रहा है? पानी तो मैं भी तुम्हें दे सकता था लेकिन कुछ खास कारणों से वह पानी मैंने तुझे नहीं दिया |

मनुष्य को अपनी और आस पास की परिस्थिति देख कर ही परोपकार कर्म करना चाहिये....






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